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नवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं । नवरात्रि की सम्पूर्ण जानकारी

Updated: Mar 11, 2023


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पंचांग के अनुसार पूरे साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है। इनमें से दो गुप्त नवरात्रि, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि कहलाती हैं। चैत्र और आश्विन मास में पड़ने वाली नवरात्रि का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्र आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर दशमी तिथि तक रहते हैं। इस वर्ष 2023 को नवरात्री 22 मार्च से 30 मार्च तक हैं.समूर्ण भारत के साथ पुरे विश्व में मनाई जाती हैं भारत में अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है। इस दौरान मां भगवती के नौ रूपों की पूजा, व्रत, गरबा नृत्य और आरती आदि का आयोजन किया जाता हैं ।


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माता दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध किया और उसका वध किया। युद्ध नौ दिनों तक चला और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर राक्षसी शक्ति का नाश किया। पुराणों के अनुसार माता ने महिसासुर का वध आश्विन मास में किया था।, इसलिए हर वर्ष आश्विन मास की प्रतिपदा से शुरू होकर पूरे नौ दिन की नवरात्रि मनाई जाती है, जिसे सिद्ध नौ रात्रियों का पर्व कहा जाता है।


माता सती अपने पिता की अनिच्छा से भगवन शिव से विवाह किया, जो हिमालय में रहने वाले एक योगी थे। और यह बात राजा दक्ष को बहुत चुबती थी एक बार जब राजा दक्ष ने जब दक्ष ने यज्ञ में माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. पर यह यज्ञ की बात जब माता सती को पता चली तो वह अपने मायके जाने की जिद करने लगी। भगवान् शिव ने उन्हें बहुत समझाया की राजा दक्ष ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया हैं तो वहा जाना ठीक नहीं रहेगा। पर माता सती ने शिवजी की एक न सुनी और आखिरकार भागवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी माता सती जब अपने पिता के यज्ञ में पहुंचीं, तो राजा दक्ष ने सती के सामने भगवान शिव को कुछ अपमानजनक बात कह दी।माता सती से भगवान् शिव का यह अपमान सहा नहीं गया और उन्होंने वही यज्ञ में कूद कर अपने पराणो की आहुति दे दी

नवदुर्गा: माँ दुर्गा के 9 रूप

नवरात्रि मनाने का अर्थ है मां दुर्गा के नौ रूपों और प्रत्येक नाम में दैवीय शक्ति को पहचानना। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक त्योहार दशहरा के उत्सव के साथ नौ दिनों के महान आनंद और उल्लास का उचित रूप से अंत होता है। नवरात्रि उत्सव की 9 रातें देवी माँ के 9 अलग-अलग रूपों को समर्पित हैं, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।


पहला दिन - शैलपुत्री

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नवरात्रि पर्व के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों का सम्मान और पूजा की जाती है। इसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। मां दुर्गा का पहला पवित्र रूप शैलपुत्री था। शैल का अर्थ शिखर होता है। शैलपुत्री को शास्त्रों में पर्वत (शिखर) की बेटी के रूप में जाना जाता है, और आमतौर पर यह माना जाता है कि देवी शैलपुत्री पवित्र पर्वत की बेटी हैं।


दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी

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नव दुर्गा के दूसरे रूप का नाम मां ब्रह्मचारिणी है। ब्रह्मचारिणी अर्थ हैं। जिसका न कोई आदि है और न कोई अंत, वह सर्वव्यापी है, सर्वोच्च है और सभी से परे है। जब आप अपनी आंखें बंद करके ध्यान करते हैं, तो आप ऊर्जा के उस शिखर या शिखर को महसूस करेंगे जो देवी मां के साथ एक हो गया है और उनके द्वारा अवशोषित कर लिया गया है। देवत्व, ईश्वर आपके भीतर है, कहीं बाहर नहीं।


तीसरा दिन चंद्रघंटा देवी

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नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा की तीसरी शक्ति है। इसमें तीन व्यक्तियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति निहित है। मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है, इसलिए इसका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इनका समरण मात्र करने से ही सारी नकारात्मक शक्तियां दूर भाग जाती हैं। माँ का रंग सोने के समान चमकीला होता हैं ,और वह एक सिंह की सवारी करती हैं। मां चंद्रघंटा का स्वरूप भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है।



चौथा दिन कूष्मांडा माता-


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नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा माता की पूजा का विधान है। ब्रह्मांड की रचना करने वाली कोमल हंसी के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मांड का निर्माण मां की ऊर्जा से हुआ था, जब चारों ओर सिर्फ अंधेरा था। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं और वह धनुष, बाण, कमल, अमृत, चक्र, गदा और कमंडल धारण करती हैं। मां के आठवें हाथ में पुष्पांजलि सुशोभित है। वह भक्त को भवसागर से ले जाती हैं और उसे ब्रह्मांड के समानांतर प्रगति प्रदान करती हैं।


पांचवा दिन स्कंदमाता


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मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। अपनी गोद में वह कुमार कार्तिकेय को रखती हैं, कार्तिकेय का एक नाम स्कंद वेद भी है, इसलिए उन्हें स्कंद माता कहा जाता है। वह कमल के आसन पर विराजमान हैं और सिंह की सवारी करती हैं । उनकी छवि स्नेही और आकर्षक है। उसकी चार भुजाएँ हैं, दोनों कमलों से सुशोभित हैं और एक में वरदान की मुद्रा है। माता ने एक हाथ से स्कंद कुमार को गोद में लिया हुआ है। स्कंद माता अपने भक्तों का भला करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।


छठा दिन कात्यायनी माता-


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नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. क्योंकि वह कात्यायन महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर, ऋषि के परिवार में बेटी के रूप में पैदा हुई थी, और सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने ही इनकी पूजा करी थी। इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। मां कात्यायनी का स्वरूप तेजोमय और अत्यंत तेजोमय है। इनके चार हाथ हैं, ऊपर वाला दाहिना हाथ अभयु मुद्रा है, और निचला हाथ वरमुद्रा है। मां ऊपर वाले बाएं हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। सिंह कात्यानी माता का वाहन है। इनकी उपासना से इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक ऐश्वर्य की प्राप्ति की जा सकती है।



सातवा दिन कालरात्रि माता-


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मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है और नवरात्रि के सातवें दिन उनकी पूजा की जाती है। इनका रूप दिखने में भयंकर दीखता हैं , लेकिन ये अपने भक्तों के लिए हमेशा शुभ फल लेकर आती हैं। इसलिए इन्हें शुभदकारी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मां ने इसी भयानक रूप में रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था। इनकी पूजा करने से भक्त सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाते हैं। वह दुष्टों का नाश करती हैं।



आठवाँ दिन महागौरी माता-

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मां दुर्गा के आठवें स्वरूप को महागौरी कहा जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है. पौराणिक कथाओ के अनुसार, देवी महागौरी ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या की और उनका शरीर काला पड़ गया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें गौरवर्ण प्रदान किया, इसलिए वे महागौरी कहलाईं। ये श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं, इसलिए इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। उनकी चार भुजाएँ हैं। दाहिने हाथ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में रहता है जबकि माता नीचे वाले हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू रहता है जबकि नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। इनकी पूजा करने से पहले किये गए सभी पापो से मुक्ति मिलती है। माता लगातार फल देती हैं और समाज का कल्याण करती हैं।


नवा दिन सिद्धिदात्री माता-


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नवरात्रि के आखिरी दिन नवमी तिथि को मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इनके नाम से ही आप जान जाते हैं कि ये सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को सिद्धि की प्राप्ति होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने उनसे सिद्धियां प्राप्त कीं और उनकी कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी (स्त्री) बन गया, जिसके बाद उन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाने लगा। वह कमल पर विराजमान हैं और इनकी सवारी सिंह है। इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


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